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Showing posts with the label वक़्त

ठीक अभी का वक़्त

मैं अपने तरह के सवालों को और उनके प्रत्याशित जवाबों को लेकर तुम्हारे भीतर से उठी अनसुलझी पहेलियों के वीरान और उजाड़ गाँव में छोड़ देता हूँ अगर मैं तुम्हारी तरफ और तुम मेरी तरफ न चली होती तो चलने की इस मृदुता को  शायद हम कभी समझ नहीं पाते जो मुझसे और तुमसे अलग हो चुका हम दोनों के साथ एक सा रहा अपने हिसाब से, और आने वाला वक़्त हमारे व्यक्तिगत वक़्तों से कैसे और किन हालातों में जुड़े इसका कोई साफ चित्र चेतना के कैनवास पर नजर नहीं आता इसलिए कहता हूँ कि ठीक अभी का वक़्त जब हम एक दूसरे की आँखों में देखकर मुस्कुरा रहे हैं , यकीनन सबसे हंसीन  और कीमती वक़्त है। हमे इस वक़्त को जी लेना चाहिए, मैं मेज पर रखा हुआ अपना चश्मा लगा लेता हूँ ताकि तुम्हारी पलकों तक  जो ख़्वाब उभर आये हैं उनको साफ देख पाऊं।  -- 'अनपढ़'

लहू का गाढ़ापन

मैं उसके लब्जों के वेग को सह रहा था अपनी छाती पर, उसने कहा कि मेरी रगों में बहता हुआ लहू, बहुत गाढ़ा हो रहा है और इतना कि जान पड़ता है नशें फटने वाली हैं, इससे पहले कि ये फटें, इनमे ब...

वक़्त

छः फलकों के बीच ढ़का हुआ एक कमरा है वक़्त तीन खुली आँखें हैं जिसकी जो टिकी हुई हैं खिड़कियों की कोहनी पर, एक आगे, एक पीछे और एक आँख में आँख डालती हुई। बाहर के किसी भी दृश्य को हम दे...

लिफाफे

मेरे इर्द-गिर्द खामोश लब्ज़ एक आवाज को अपनी जेबों में छुपाये हुए हैं पर वक़्त की हर आँख में वही दृश्य नहीं है। उस वक़्त जब बेचैनी के तमाम टुकड़े हवा में उड़ते हुए आते हैं और मेरी आ...

वक़्त की तरह नहीं...

एक जमीन अगर होता वक़्त एक रास्ता सा, तो हम चलकर कुछ दूर गिरते-पड़ते, भटकते हुए से कहीं पर, किसी जगह से वापस लौटकर आ सकते। अगर आसमान होता ये वक़्त तो हम ये जानते होते कि अगर नही हों ब...

मत दोहराओ उसी बात को हर बार...

कि मैं नहीं हूँ, कहीं भी तो नही हूँ अब हाँ कि तुम हो उथल-पुथल रख देते हो उधेड़कर हर एक सिली हुई चीज को और मैं गुम हो जाता हूँ खामोशी के निर्मम अंधेरों में। बहुत गहरी उम्मीदें रही ...

घड़ियाँ...

इस कमरे की हर एक दीवार पर लटका दूं घड़ियाँ बहुत सारी और हर घड़ी एक अलग वक्त बयां करे। मीनार-ए-ख्वाहिश के एक छोटे से कमरे को बता रहा हूँ मैं; मेरा जागना मेरा सोना देर रात के सन्ना...

अकेली है वो...

अकेली है वो... हर एक पहलू बीमार है अस्तित्व का, आवाज कराहती है मांगती है मौत, कि खंडहर सा लगता है घर उम्मीदों का, मुर्दा सा लगता है वो बुजुर्ग बदन। तीन बेटे हैं उसके नही है कोई आस...

कुछ ढूंढता हुआ......

कुछ ढूंढता हुआ...... कि एक कहानी शुरू करूँगा मैं इससे पहले गहरी एक सांस ले लूं, जी भर के बातें करूँगा हर एक किरदार से मैं और कोशिश करूंगा समझने की हालातों को नायक के कि हर एक पहलू ख...

धूल खाती किताबें।

बीत गया है, एक बहुत बड़ा हिस्सा वक़्त का गौर नही किया किसी ने सजी हुई किताबों पर लाइब्रेरी में। इन किताबों के शब्द बेजान तो हैं पर रखते हैं खुद में जिंदादिली। न जाने कितनी हैं ...

सफ़र

सामने निगाहों के साया एक नजर आता है, हर एक शय बिखरती है बस वक़्त ठहर जाता है। ख़्वाहिश है पहुँचने की तेरे आशियाँ पे ऐ सुकूँ, पर रस्ते में कहीं एक वीरान शहर आता है। कोशिश में हूँ ज...

उधेड़बुन में...

उधेड़बुन में अपनी तमाम गलियों से भटक आया हूँ, कि शाम फिर ढ़ल गयी मैं अपने घर लौट आया हूँ। घर में रखी हर एक शय मुझसे गुफ्तगू किया करती है, जरा से बाहर आँगन के अपनी ख़ामोशी छोड़ आया हू...

बेबसी...वक़्त ये बस बह रहा।

सितारे...आसमां या ये पेड़ बेबस सा दिख रहा, सिमट सा गया है खुद में ये जितना कुछ है दिख रहा। चाहता हूँ कि बोलूँ...बहुत कुछ मैं सुना दूँ, सुनूँ बेबसी पत्थर की कुछ, बहुत कुछ है जो कह रहा। ...

बिखरा है।

कि अंदर का वो शख्स कुछ उलझा हुआ सा है, जरूरत क्या है उसको बस बहका हुआ सा है। परदे बेशुमार डाले हैं झूट के बाहर से काले रंग के, अंदर कई बार नंगा नजर आता है सहमा हुआ सा है | बस साँसों ...

समझ नहीं आता...

ये किरदार न जाने क्यों समझ नहीं आता कि जाने, क्या कहते-कहते रुक जाना समझ नहीं आता। परिन्दों ने बनाया खूबसूरत आसमां को है, पर कुछ परिंदों का यूं लौटके न आना समझ नहीं आता। कहाँ ...

कोई बात तो है...

रुका-रुका है वक़्त आज कोई बात तो है, भीग गया हूँ धूप में कहीं बरसात तो है। मिलो हो ख़्वाबों में ही तुम कभी हकीकत दो, कहाँ गया चाँद मेरा की अभी रात तो है। 

कुछ लड़खड़ा लूँ...

गर अपना वक़्त थोड़ा सा दो तो मैं जिंदगी अपनी बढ़ा लूँ, तुम निगाहें जरा सा बंद करो तो मैं कुछ लड़खड़ा लूँ। सायों से रुबरु हूँ जबसे फासलों की तरफ तुमने रुख किया, लौटो जो वहीँ फिर तो मै...