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Showing posts with the label रास्ते

हजारों रास्ते।

ये जितना कुछ भी दिखता है घुला हुआ या छूता हुआ सा या दिखता सा लगता है ये हजारों रास्ते जो कि निकलते हैं मेरे अंदर से कहीं न कहीं तो पहुंचते होंगे, मैं कुछ दूर खुद को ले जाकर किस...

शाखों पर...

मैं अगर लौट पाया वहाँ से तो एक मुट्ठीभर मिट्टी लेके आऊंगा, और तोड़कर लाऊंगा वो अलसाये हुए पत्ते पेड़ से जो कि गिरने वाले हैं शाखों से। देखूँगा दम तोड़ते हुए उन पत्तों को और, या...