मैं अपने तरह के सवालों को
और उनके प्रत्याशित जवाबों को लेकर
तुम्हारे भीतर से उठी अनसुलझी पहेलियों के
वीरान और उजाड़ गाँव में छोड़ देता हूँ
अगर मैं तुम्हारी तरफ
और तुम मेरी तरफ न चली होती
तो चलने की इस मृदुता को
शायद हम कभी समझ नहीं पाते
जो मुझसे और तुमसे अलग हो चुका
हम दोनों के साथ एक सा रहा
अपने हिसाब से,
और आने वाला वक़्त
हमारे व्यक्तिगत वक़्तों से
कैसे और किन हालातों में जुड़े
इसका कोई साफ चित्र
चेतना के कैनवास पर नजर नहीं आता
इसलिए कहता हूँ कि
ठीक अभी का वक़्त
जब हम एक दूसरे की आँखों में देखकर
मुस्कुरा रहे हैं ,
यकीनन सबसे हंसीन
और कीमती वक़्त है।
हमे इस वक़्त को जी लेना चाहिए,
मैं मेज पर रखा हुआ अपना चश्मा लगा लेता हूँ
ताकि तुम्हारी पलकों तक
जो ख़्वाब उभर आये हैं
उनको साफ देख पाऊं।
--'अनपढ़'
Bahut khub anpadh babu
ReplyDeleteZabardasst Bhai!
ReplyDeleteBahut he lajavaab Dr. Saab
ReplyDeleteGood👍
ReplyDeleteAs always awesome..Sir
ReplyDeleteBehtareen
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