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Showing posts with the label वेदना

हाँ! झाँकना सही था।

कि बीतकर नमी से जेहन की, मिलती हुई तुमसे साझा करती हुई हर खामोश गुफ़्तगू सभी चुभते, बिलखते खयालों को निचोड़ दिया और तुम उठ गए और जा मिले खुद से; तभी तो, अपने भीतर झाँकना सही था। ए...

चढ़ाई...

उसने वेदना के भीतरी स्वरों को महसूस करते हुए वो जो बहते हैं तुम्हारी आँखों की गहराइयों से और गिरकर जमीन पर पसीने की बेरंग शक्ल में खुशबू पैदा करती है मिट्टी में, अपना हाथ ब...