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Showing posts with the label बेख़बर

उतर जाना मेरे भीतर...

आओ कि मैने बिछाई है चाँदनी शाम के महकते आंगन में अंगीठी अपनी गर्म थपकियों से मुझे सहेजती है। ये बीहड़ धरती मेरे आये दिन के कामों की और ये गहनाता, उड़ता हुआ धुआँ बनाता हुआ घरौं...

बेख़बर होके...

बेख़बर होके देखता हूँ कि मुझे कितनी खबर रहती है, अब तो अपनी ही तलाश मुझे दरबदर रहती है। खुद के पास बैठ के जाना कि मैं कौन हूं, कैसा हूँ, ख़्वाहिश अपने नए पहलू की मुझे अब हर सफर रहती ...