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Showing posts with the label झोंपड़ियां

चेतना को छूते हुए।

विकृत हुए लब्ज़ और खयालों का मलबा सभी कुछ वो सरकता हुआ डर और पिघलता हुआ लम्हा गाड़ियों के नीचे कुचला हुआ परिंदा और ढ़का हुआ धुंए से स्थिर सा माथा। चिल्लाता हुआ लालकिले से टूट...