Skip to main content

Posts

Showing posts with the label अकेलापन

अकेलापन...

अकेलेपन को उड़ेलते हुए चाहती है ये कलम जी जान से कि, यूं ही लगता रहे ढ़ेर सादे कागजों का एक विशालकाय पहाड़ की तरह; जिसकी गहनाती हुई सादगी हर किसी के गले नही उतर पाएगी, जरूरत है कि ...

अकेली है वो...

अकेली है वो... हर एक पहलू बीमार है अस्तित्व का, आवाज कराहती है मांगती है मौत, कि खंडहर सा लगता है घर उम्मीदों का, मुर्दा सा लगता है वो बुजुर्ग बदन। तीन बेटे हैं उसके नही है कोई आस...