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Showing posts with the label खलिश

ओ साथी!

रात सुनाई पड़ रही है कुछ बोलती सी घटा खुद में घुले अश्कों को है तोलती सी बहुत ही हाँफकर क्यों हो डगर में आओ मैं हूँ साथ बैठो छाँव में ओ साथी! अधूरी अधूरी सी लगती है दुनिया न तेरी ...

हाँ! झाँकना सही था।

कि बीतकर नमी से जेहन की, मिलती हुई तुमसे साझा करती हुई हर खामोश गुफ़्तगू सभी चुभते, बिलखते खयालों को निचोड़ दिया और तुम उठ गए और जा मिले खुद से; तभी तो, अपने भीतर झाँकना सही था। ए...

लम्हों से

रूबरू हुआ तरसते हुए कुछ बीते हुए आजाद लम्हों से, चाहत थी समेटकर रख दूं जिंदगी इन बेताब लम्हों से। नासाज सी दिखी निगाहों में सारी दुनिया आज क्यों, अब क्या ख़ाक सो पाउँगा होके र...