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Showing posts with the label चेतना

असीम

मन के विस्तृत घुड़साल में घोड़ों का हिनहिनाना ठीक उसी तरह बेहद प्राकृतिक है जैसे कि दो किनारों के बीच नदी का साँस लेना, अगर हम अवचेतन के गहरे तलों में सबसे निचली सीढ़ी पर व्या...

राजनीति

यथार्थ है, ठीक उसी तरह जैसे कि आसमान जो कि मेरी जेबों के हर एक पहलू के साथ साथ मेरे जूते के अंदर भी है; कि चाँद का होना समुद्र के अस्तिव को प्रभावित करता है, तो सम्भव है कि इंसान...

औंधे मुंह गिरे हुए।

देहरी पर आहट को उतारते हुए कुल्हाड़ी से आहत सभी लोगों के हृदय धड़कना बंद कर देते हैं और धूप चमकती है घने गधेरे के ऊपर के जंगल में बहुत ही वेग से भागते हुए औंधे मुंह गिर पड़े हैं क...