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याद।

कोई भी याद चली आती है आंखों में न जाने कहाँ रुकी होती हैं अपना डेरा डालकर किस घर में कौन सी जगह; उदास हवाओं के सहारे खच्चरों को खदेड़ने की याद हो धधकती दोपहर में जिंदगी को हां...