अकेली है वो...
हर एक पहलू
बीमार है
अस्तित्व का,
आवाज कराहती है
मांगती है मौत,
कि खंडहर सा लगता है
घर उम्मीदों का,
मुर्दा सा लगता है
वो बुजुर्ग बदन।
तीन बेटे हैं उसके
नही है कोई आसपास
नही रहता घर कोई,
वो अकेली
आँगन में बस
अपने चेहरे पे भिनभिनाती
पुरानी यादों के साथ
हटाती है एक मक्खी को भी
अपने चोटिल थके हाथों से।
वक़्त
सागर सरीखा
अपार, व्याप्त सा लगता है
फैला हुआ,
पेड़ से तोड़कर
एक अधपका पपीता
सिलवटे पे पीसकर
हरी मिर्च, धनिया और नमक
देहरी पे बिछे बोरे पे
बैठ गयी है वो
कि सुनसान दोपहरें
गर्मियों की
एक झोला लेके
यादों का
ले आती हैं अश्कों की खुशबू
किनारे पे उसकी आँखों के।
बड़ा सा थैला लिए
एक युवक गुजरता है पथ से
एक औरत के साथ
(संभवतः उसकी पत्नी)
जिसने सजाया है खुद को
चमकीले कपड़ों से।
वो बुज़ुर्ग बदन
आतुर आंखों से
प्रयास करती है उन्हें पहचानने का
शायद उसके बेटे और बहू हों
इन्ही उम्मीद भरी निगाहों से
मगर वो नही होते
लेकिन उनमें देखती है वो
अक्सर उन्ही को।
चरमराता दरवाजा वो घर का
ढीले बिजली के तार
झूलते हुए और
उनपे मक्खियों का मल,
उसका कमरा वही है
एक चरमराती खाट पर
एक मैला सा बिछौना
उसके नीचे
पानी ढका है एक कटोरी से
ताँबे के लोटे में
कुछ उम्मीदें मानो
इस लोटे में कैद हों।
लंबी रात की आहटें सुनकर
सिकुड़ जाता है
अंतस उसका
जाड़े से
अकेलेपन के।
आधी रात से
सुबह उजाले का
इंतजार है उसको
कि ये रात मानो कटती ही नही,
चुभती है कांटे की तरह
चार पहर पुराने घाव पर;
कुछ तलाश है
बुजुर्ग सूखी आंखों को
या इंतजार है एक
अनजाने से साये का
जो अकेलेपन में उसके
दो चार बातें साझा कर सके उससे।
महज
तीस बरस में
विधवा हो गयी थी वो
आज साठ के आसपास है,
अपने बच्चों को पालने में
कई बार टूटी थी वो
पर आज
अकेली है वो।
(अर्ध आत्मकथात्मक)
12 जनवरी 2016
Copyright@'अनपढ़'
मार्मिक सर
ReplyDeleteशुक्रिया अश्म
Deleteयथार्थ और कल्पना का अच्छा समन्वय
ReplyDeleteयही समाज की विडंबना है
गांव से पलायन होने के कारण जो स्थितियां उत्पन्न हुई हैं उन का आपने एक बहुत ही मार्मिक दृश्य प्रस्तुत किया है।।।आंख छलक जाती है हर एक उस शक्स की जिसने यह दृश्य देखा हो ।।।।
ReplyDeleteAdbhut .love you.
ReplyDeleteI can feel this poetry as it is...... in my 11th class we did survey in village for a science competition......I saw there a old daadi in same condition...❤️😕
ReplyDeleteSpeech less
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