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Showing posts with the label ठहराव।

हाँ! झाँकना सही था।

कि बीतकर नमी से जेहन की, मिलती हुई तुमसे साझा करती हुई हर खामोश गुफ़्तगू सभी चुभते, बिलखते खयालों को निचोड़ दिया और तुम उठ गए और जा मिले खुद से; तभी तो, अपने भीतर झाँकना सही था। ए...