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Showing posts with the label खयाल

सृजन की स्याही।

छिड़क दो स्याही अपने ख़यालात की एक सादे कागज पर; नम है जब तलक तो कैनवास पर कागज के एक चित्र उकेरो शब्दों का। कोशिश करो कि उभर के आये सिर्फ अनुभूति का चेहरा; किसी दबाव की शक्ल कुछ...

यूँ खामोशी में।

हजारों सीढ़ियां कोशिशों की, अगर करूं मैं प्रयत्न किसी पर लगाकर जमावड़ा जड़ हो चुके खयालों को कुरेदने की, बीती तारीखों के सायों को दिखाने की आईना; पिता ने अपनी उंगली थमाई महकत...

चेतना को छूते हुए।

विकृत हुए लब्ज़ और खयालों का मलबा सभी कुछ वो सरकता हुआ डर और पिघलता हुआ लम्हा गाड़ियों के नीचे कुचला हुआ परिंदा और ढ़का हुआ धुंए से स्थिर सा माथा। चिल्लाता हुआ लालकिले से टूट...

तुमको छोड़ दिया गया...

उस दहलीज पर उम्र की तुम मासूमियत की पनाह में थी आज भी हो तुम तो, कोख में पल रही एक तबस्सुम और तुम चली आयी वहां से! या तुम्हे समझकर जाल मकड़ी का घर की बैठक के किसी कोने में साफ कर दि...

हाँ! झाँकना सही था।

कि बीतकर नमी से जेहन की, मिलती हुई तुमसे साझा करती हुई हर खामोश गुफ़्तगू सभी चुभते, बिलखते खयालों को निचोड़ दिया और तुम उठ गए और जा मिले खुद से; तभी तो, अपने भीतर झाँकना सही था। ए...

सृजन...

चलते फिरते घर खयालों के और उनमें रात के किनारे पर गहरी नींद से जागकर अपनी आंखें मीचते हुए सृजन की नई सुबहें अपनी जिंदगी को तैयार हैं जीने के लिए कि जिनमें शब्दों के सूरज सा...

वो कुछ खयाल...

लड़खड़ाते सहारे बैशाखी के और उनको गले लगाकर चल रहे थे वो तमाम खयाल उलझनों के माथों को चूमते हुए जिनको खुद मैंने अपाहिज बनाया। जाने अनजाने अजनबी दास्तानों को साथ लेकर जेबो...

रात को शहर कर देता है...

आहटों का टपकता सिलसिला ज़हन को तरबतर कर             देता है, कि ख़याल तेरे आने का हर पल मुझे बेखबर कर देता है। पुराने हंसी मौसमों का असर आज कुछ ऐसा कि, मेरे दो क़दमों के चलने को एक ...