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"गुजरता जा रहा है"

काफिला लम्हों का बस गुजरता जा रहा है, कि ये वक़्त हर पल बस बदलता जा रहा है। उदास बिखरा पड़ा है ये शहर मेरे सामने, कि होने को है बहुत कुछ और ये सिमटता जा रहा है। तलाश में गुम हैं निगाहें हर एक शख्स की यहां, कि कभी गुमसुम सा है वो तो कभी बहकता जा रहा है। जाने कहाँ रुक जाएँ ये कदम चलते-चलते, कि हर कदम अपने वजूद से भटकता जा रहा है। खोल के रख भी दूं जितना कुछ है ज़हन में, इसके होने से मेरा भरम महकता जा रहा है। होना है रूबरू मुझे अपने भीतर के शख्स से, कि ये खुद ही तो खुद में बस मचलता जा रहा है। 6 फरवरी 2018 copyright@ 'अनपढ़'