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जहाँ मौजूद हूँ...

अपने भीतर पड़ी हुई किन्हीं असीम गहराइयों में बासी सिलवटों को ठीक कर रहा हूँ मैं एक अरसे से, सुलझाने में लगा हूँ पेचीदगी से उलझे हुए दौड़ते, उड़ते हुए बुलबुले से सवालों को; बहुत ...