मैं उसके लब्जों के वेग को
सह रहा था अपनी छाती पर,
उसने कहा कि मेरी रगों में
बहता हुआ लहू,
बहुत गाढ़ा हो रहा है
और इतना कि
जान पड़ता है
नशें फटने वाली हैं,
इससे पहले कि ये फटें,
इनमे बहते हुए अपार प्रेम को
बाँटना चाहता हूँ,
इसको सहेजने वाला कोई
सहज नहीं मिलता।
दो नकाबपोश आदमियों ने
मेरी जाँघों पर
किसी नुकीले हथियार से निर्मम वार किया
मेरी पीठ पर आज भी
एक गहरा निशान है चोट का
इसी बीच सुलगती हुई सिगरेट से
उंगलियां जलती हैं तो सामने
मैं नजर आता हूँ
एक लंबा वक्त वहाँ गुज़ारने के बाद
वापस लौट आते हैं हम
जो सार्थकता भी है।
नशों में लहू का गाढ़ापन
मेरे जेहन में ठीक उसी तरह मौजूद है
जैसे कि कल तुम
उसमें बहते हुए प्रेम को बांटते हुए
बेहद खुश नजर आ रहे थे।
(एक मित्र से बातचीत के कुछ अंश)
01 अप्रैल 2020
Shandar sir
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