सामने निगाहों के साया एक नजर आता है,
हर एक शय बिखरती है बस वक़्त ठहर जाता है।
ख़्वाहिश है पहुँचने की तेरे आशियाँ पे ऐ सुकूँ,
पर रस्ते में कहीं एक वीरान शहर आता है।
कोशिश में हूँ जीने की हर पल के फलक पर,
चाँद से टकराता हूँ तो एक दर्द उभर आता है।
घने लंबे अंधेरों में दियों की मौत देखी है,
माँ सर चूमती है तो हर दर्द उतर जाता है।
तलाश में हूँ हर कहीं जमीं पर आसमानों पर,
रूबरू गर वो हुआ तो खत्म वहीं सफ़र हो जाता है।
3 फरवरी 2017
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'अनपढ़'
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Dr. Deepak Bijalwan
Poet, Translator