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Showing posts with the label प्रकृति

कविता की यात्रा और कवि...

मैं नहीं कहूँगा कुछ भी नही करूँगा कुछ भी अभिव्यक्त, अपने होंठों से नही खिसकने दूँगा शब्दों को, लब्जों के मायने नहीं हैं मेरी पकड़ में; तुम खुद फैला देना हर एक बात को हवा में; पर...

सुंदरता...

कई सीढ़ियां उतरकर अपने दिव्य रूपों के साथ प्रकृति से तुमने फिर स्त्री में अपना घर ढूंढा। आंखों में एक अनन्त समुद्र होने के बाद जिसकी लहरें अपार ऊर्जा को पालती हैं अपनी गोद ...