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Showing posts with the label अवचेतन

असीम

मन के विस्तृत घुड़साल में घोड़ों का हिनहिनाना ठीक उसी तरह बेहद प्राकृतिक है जैसे कि दो किनारों के बीच नदी का साँस लेना, अगर हम अवचेतन के गहरे तलों में सबसे निचली सीढ़ी पर व्या...

याद।

कोई भी याद चली आती है आंखों में न जाने कहाँ रुकी होती हैं अपना डेरा डालकर किस घर में कौन सी जगह; उदास हवाओं के सहारे खच्चरों को खदेड़ने की याद हो धधकती दोपहर में जिंदगी को हां...