सितारे...आसमां या ये पेड़ बेबस सा दिख रहा,
सिमट सा गया है खुद में ये जितना कुछ है दिख रहा।
चाहता हूँ कि बोलूँ...बहुत कुछ मैं सुना दूँ,
सुनूँ बेबसी पत्थर की कुछ, बहुत कुछ है जो कह रहा।
टांग दूं ख्वाहिशें कुछ...सिमटते वक़्त की खूँटी पर,
ये वक़्त पिघलती बर्फ सा...है वक़्त ये बस बह रहा।
ये आइना देखे मुझे...या ताकता मैं हूँ आईने को?,
कि मुद्दतों से बस यूं ही...है सिलसिला ये चल रहा।
ख्वाब जो ये दिख रहे हैं...खुली आँखों के पर्दों पर,
चाह तेरी क्यों रखूँ मैं...जब हर लब्ज में है तू बह रहा।
Copyrighted @ 'अनपढ़'
26 दिसंबर 2017
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