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Showing posts with the label किरदार

एक भ्रम कहीं।

कहीं कोई स्वप्न देख रहा है और हम सब किरदार हैं उस स्वप्न के कुछ सहमे हुए, कुछ हँसते-खेलते, कुछ रोते हुए। हजारों आकाशगंगाएं, धरती, आसमान, सूरज चाँद-तारे आसमान भी क्या बस भ्रम ध...

और सामने होती हो तुम...

मैं लेकर आया चंद बून्दें उस दरिया से जहाँ पहुंचा मैं कुछ पेचीदा रास्तों से होकर और लिख दिया तेरा नाम एक सादे कागज पर, और हां मुकम्मल हो गयी एक कहानी, ये महसूस भी नही होता कि क...

वक्त की पीठ पर...

एक झल्लाहट के साथ रो उठता है वो जब हाथ से पकड़ छूट जाती है रस्सी की जिससे बंधा है वो खच्चर जो अक्सर मौका मिलते ही भाग जाता है। एक बड़ा हिस्सा बिताने के बाद वक़्त का (जिसका हर पल एक ...

कुछ ढूंढता हुआ......

कुछ ढूंढता हुआ...... कि एक कहानी शुरू करूँगा मैं इससे पहले गहरी एक सांस ले लूं, जी भर के बातें करूँगा हर एक किरदार से मैं और कोशिश करूंगा समझने की हालातों को नायक के कि हर एक पहलू ख...

समझ नहीं आता...

ये किरदार न जाने क्यों समझ नहीं आता कि जाने, क्या कहते-कहते रुक जाना समझ नहीं आता। परिन्दों ने बनाया खूबसूरत आसमां को है, पर कुछ परिंदों का यूं लौटके न आना समझ नहीं आता। कहाँ ...