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Showing posts with the label पतझड़

यूँ खामोशी में।

हजारों सीढ़ियां कोशिशों की, अगर करूं मैं प्रयत्न किसी पर लगाकर जमावड़ा जड़ हो चुके खयालों को कुरेदने की, बीती तारीखों के सायों को दिखाने की आईना; पिता ने अपनी उंगली थमाई महकत...

चेतना को छूते हुए।

विकृत हुए लब्ज़ और खयालों का मलबा सभी कुछ वो सरकता हुआ डर और पिघलता हुआ लम्हा गाड़ियों के नीचे कुचला हुआ परिंदा और ढ़का हुआ धुंए से स्थिर सा माथा। चिल्लाता हुआ लालकिले से टूट...