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Showing posts with the label उम्मीद

बचपन के गलियारों में।

वो जो स्कूल के पीछे गलियारा है न साथी तुमने एक कंकड़ उठाकर उसमे ठहरे हुये पानी पर मार दिया छपाक से जो जमा हुआ था पिछले दिन की बारिश में खूब बरसा था आसमान, और हलचल मुझे आज अरसों ...

ख़ामोश सिसकियाँ...

एक ख्वाब उतरकर तुम्हारी आँखों से गुम है मेरे उन अश्कों में जो सिर्फ अंदर ही रह गए। उम्मीद की छड़ी टेके हुए उन आंखों में ख्वाबों की खिड़की से तमाम रौशनी घर की हर एक चीज को रोशन क...

बाकी तो है...

है अलख धीमा अभी अँधेरा कुछ बाकी तो है, पलकें भी हैं सुस्तायी हुयी सबेरा कुछ बाकी तो है। खँडहर में इस दौर में अब जाले हैं फैले मकड़ियों के, बिखरा पड़ा है टूट के सब बस राख कुछ बाकी त...