Skip to main content

Posts

Showing posts from September, 2018

न जाने कितने चेहरे...

ऐ चाँद चांदनी भर नजर मुझे दे दे खुद को देखना है कि दुनिया बहुत देख ली सूरज के उजालों में। फैली है नफरत हर जगह बिखरा पड़ा है लहू कि आदमी खाने लगा है नोचकर आदमी को ही। हर शाम थक हारकर उड़ाती है धुआँ मेरे साथ कि बीत चुका जो होना था आज कल फिर हमें मिलना है। खबर मिली है कि बहा रही है सब कुछ ये बाढ़ हां बाढ़ बनके चले होंगे आदमी भी कभी। कोई आईना तो ला के दो खुद को देख लूँ एक दफा कि मैं भी घूमता हूँ न जाने कितने चेहरे लेकर। 26 अगस्त 2018 Copyright @ 'अनपढ़'

अकेली है वो...

अकेली है वो... हर एक पहलू बीमार है अस्तित्व का, आवाज कराहती है मांगती है मौत, कि खंडहर सा लगता है घर उम्मीदों का, मुर्दा सा लगता है वो बुजुर्ग बदन। तीन बेटे हैं उसके नही है कोई आसपास नही रहता घर कोई, वो अकेली आँगन में बस अपने चेहरे पे भिनभिनाती पुरानी यादों के साथ हटाती है एक मक्खी को भी अपने चोटिल थके हाथों से। वक़्त सागर सरीखा अपार, व्याप्त सा लगता है फैला हुआ, पेड़ से तोड़कर एक अधपका पपीता सिलवटे पे पीसकर हरी मिर्च, धनिया और नमक देहरी पे बिछे बोरे पे बैठ गयी है वो कि सुनसान दोपहरें गर्मियों की एक झोला लेके यादों का ले आती हैं अश्कों की खुशबू किनारे पे उसकी आँखों के। बड़ा सा थैला लिए एक युवक गुजरता है पथ से एक औरत के साथ (संभवतः उसकी पत्नी) जिसने सजाया है खुद को चमकीले कपड़ों से। वो बुज़ुर्ग बदन आतुर आंखों से प्रयास करती है उन्हें पहचानने का शायद उसके बेटे और बहू हों इन्ही उम्मीद भरी निगाहों से मगर वो नही होते लेकिन उनमें देखती है वो अक्सर उन्ही को। चरमराता दरवाजा वो घर का ढीले बिजली के तार झूलते हुए और उनपे मक्खियों का मल, उसका कमरा वही

O’ TRAVELER OF THE NOONTIME

O’ TRAVELER OF THE NOONTIME (translation from original garhwali "dofra ka batoi" by N. S.  Negi,) O’ traveler of the noontime In the shade of love Lighten up for a moment Lighten up. With the heart craving adequate How far will you walk? Lighten up for a moment. Everything, all the rills and rivers are waterless Gone the glow of my face Eyes no longer have tears No… do not let the hopes die O’ traveler of the noontime In the shade of love Lighten up for a moment. From roots of oak tree Chagal is full with water (Chagal – a kind of pot made by wool keeping water cold) Drink till satisfaction Desires remain not forever. Who’ll give you a voice tomorrow? O’ traveler of the noontime Lighten up for a moment. You are entrapped within the transient beauty Never went profound into the spirit I burnt inside but you never stirred ashes Ruthless, merciless you are O’ traveler of the noontime In the shade of love Lighten up for a moment. A few words with pass

कोई ख़्वाब नही है ये.....

कोई ख़्वाब नही है ये..... एक खुली वीरान जगह और मुझे बांध रखा है रस्सियों से नफ़रत की चारों तरफ पसरा हुआ है एक सन्नाटा एक खालीपन स्याह रात सा जो निघल लेती है सारा उजाला भीतर अपने, बहुत सहमी हुई हूँ डर एक आदमखोर सा निघल जाएगा मुझे तरबतर है जहन पसीने से कि यहां भी डूबने का डर है। चारों तरफ बहुत पैनी आरियाँ तुम्हे काटने को दौड़ रही हैं और उनकी आवाज कानों से होकर गुजर रही है ये महसूस कराते हुए कि आपकी छाती को नोचकर चाकू से निकाल रहे हों दिल आपका जैसे, आरियाँ तुम्हे छूने को थी कि वो औरत बहुत डरावनी शक्ल की मेरे बहुत करीब आकर कहती है मुझे झकझोर के कि कोई ख्वाब नहीं है ये, हकीकत है हर पहलू अपनी खुली आँखों को थोड़ा और खोलकर देखो कोई भूल मत करना इसको ख्वाब समझने की। और वो आरियाँ लहू-लुहान कर देती हैं काटकर तुम्हे, कुछ ही पलों में आँखों में सिर्फ खून नजर आता है बहुत डरावना दृश्य है, चारों तरफ, हर कहीं सिर्फ खून ही खून है। मैं देखना नही चाहती कटते हुए बदन की तरफ तुम्हारे पर वो औरत हर एक कोशिश करती है बार-बार कि मैं देखूं तुम्हारी तरफ लेकिन मैं नही द

कुछ ढूंढता हुआ......

कुछ ढूंढता हुआ...... कि एक कहानी शुरू करूँगा मैं इससे पहले गहरी एक सांस ले लूं, जी भर के बातें करूँगा हर एक किरदार से मैं और कोशिश करूंगा समझने की हालातों को नायक के कि हर एक पहलू खुद में समेटे हुए है बहुत कुछ। सलीखा कब उतरता है इंसान में परिपक्वता जिसे कहते हैं, क्या उम्र के साथ या हालातों का हाथ पकड़कर? धूप चमक रही है आँखों पर इस खिड़की से कि मैं खिसका देता हूँ ये पर्दा और आराम से बैठ जाता हूँ कुर्सी पर। देख लेता हूँ घड़ी की तरफ भी एक दौड़ती नजर, हालांकि वक़्त बहुत है, नहीं होता कई बार लेकिन जो हम चाहते हैं उसके लिए आसमान से वक़्त का टुकड़ा लेकर रख लेते हैं हम जेबों में अपनी। तुम कुछ ढूंढ रहे हो क्या? मुझे बताओ, शायद कुछ मदद कर पाऊं। बेहद अजीब होता है कई दफे ये इंतजार और समझते भी हैं हम कि सिर्फ आंखों पर अपनी एक पर्दा डाले हुए हैं, होना नही है कुछ और न किसी को आना है। चाबी के छल्ले को अपने दायें हाथ की किसी उंगली में डालकर घुमाते रहो काफी देर तक और देखते रहो किसी बेजान चीज की तरफ। वो जो गुम्बद नजर आता है मंदिर का पहाड़ की चोटी पर उसके पीछे

चाँद

चाँद चाँद की सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि आप इसको जितनी देर हो सके देख सकते हैं। ये आपकी आंखों को चुभेगा नही सूरज की तरह। इसको देखना सिर्फ सुकून देगा। आँखों को जहन को। आंखों को बहुत देर तक गढ़ाए रखो चाँद की तरफ जिंदगी के हर एक पहलू को बयां करेगा। ये जो लोग दाग कहा करते हैं ये दरअसल दाग नही ये लकीरें हैं चेहरे पर चाँद के जो कि हुआ करती हैं इंसानों के माथों पर। खूबसूरत रुएँ के जैसे बादल जो चारों तरफ चाँद के बेहद साफ चमकते हुए नजर आते हैं यही तो हैं खुसमिजाज लम्हे हमारे और इन्ही के बीच कुछ खाली जगहें नजर आती हैं जो वो हमारे दुखों से नाता रखती हैं। ये चाँद बहुत खूबसूरत है और ये मौका देता है हमे इसको निहारते रहने का। माँ का चेहरा भी नजर आता है कभी मुझे इसी चाँद के आसमान पर किसी प्रेमिका का आये भी तो ठहरता नही कुछ पल भी। खूबसूरत माँ के प्रेम का कोई पर्याय नही। यही तो ख़ूबससूरती है। चाँदनी की और माँ के आँचल की। चाँद यहीं कहीं आसपास है मेरे साथ आओ गर देखना है चाँद तुम्हे शायद अकेले नजर नहीं आएगा शायद आ भी जाये। यह सिर्फ देखने से नहीं दिखेगा इसको देखना पड़ेग

धूल खाती किताबें।

बीत गया है, एक बहुत बड़ा हिस्सा वक़्त का गौर नही किया किसी ने सजी हुई किताबों पर लाइब्रेरी में। इन किताबों के शब्द बेजान तो हैं पर रखते हैं खुद में जिंदादिली। न जाने कितनी हैं हजारों में शायद हर जगह सजी हैं लाइब्रेरी में जो मांगती हैं नजरें उनपे गौर करने के लिए। वहीं पास के कैंटीन में सैकड़ों युवा हैं चीखते चिल्लाते रहते हैं न जाने क्या - क्या। बेचारा वो ऊँघता रहता है, मेरे पैरों की आहट सीढ़ियों पर रीडिंग रूम के जब भी पड़ती है उसके कानों में एक अलार्म की तरह, हड़बड़ाहट में आंखें खुलती हैं उसकी और सो जाती हैं फिर। मैं आलमारी से कोई किताब निकालकर शब्दों से बातें करने लगता हूँ। ऐसा अक्सर होता है यहां तो ऐसा ही है। 5 अगस्त 2015 & 10 सितंबर 2018 Copyright@ 'अनपढ़'

मगर साथ तुम न थी...

सफर हंसी था तो मगर साथ तुम न थी फिजायें थी खुशनुमा बहुत मगर साथ तुम न थी। घरौंदे रेत के बनाये कई मैंने और उनमें मुद्दतों मैं रहा भी मगर साथ तुम न थी। महकते दरख्तों की शाखों पे लम्हे जिये सन्नाटों को सुना भी मैंने मगर साथ तुम न थी। ताकता रहा रातभर चाँदनी के सुकून को बात भी हुयी चाँद से मगर साथ तुम न थी। हर कदम पे सफर को जिया जिंदादिली से है मगर है अधूरा सा कुछ क्योंकि साथ तुम न थी। खुद से हो गयी मोह्हब्बत बेइंतहां है अब तुम्हे भुला ही चुका हूँ क्योंकि साथ तुम न थी। 27 अगस्त 2015 Copyright@ D.B. 'Anpadh'

खलिहान में वो

खलिहान में वो...... धधकती धूप में सर पर कपड़ा रखके हांफते बैलों की साँसों को हल्का करके कुछ देर सुस्ताने पेड़ की छांव में आया है वो। वाकिफ़ है वो हर पहलू से खलिहान के क्योंकि अक्सर दोपहर की दाल में कोई कंकड़ आ जाता है दांतों तले उसके। ऊपर चोटियों से आकर कोई सर्द हवा पसीने से तरबतर बदन को दे जाता है एक सुकून। रेफ्रिजरेटर का ठंडा पानी एक वरदान से लगता है उस वक़्त कभी थाली में आम, तरबूज या कोई और फल खुश कर देता है जेहन को उसके। निगाहें ताकती हैं हर घड़ी जाने की राह अपने घर, अपनी मंजिल अपने आशियाने की राह। जलता है जब उसका पाँव खलिहान में उभरे हुए किसी पत्थर से ताकती हैं आंखें तब माँ की गोद के सिरहाने की राह। धधकते दोपहर में हर आंख सुस्ता रही हो जब जिंदगी को कोसने की फ़ितरतें होती हैं तब। वो, वो जो खेतों में, खलिहानों में फिरता है रोटी के लिए दो वक्त की काश कहीं सुकून में होता सोचते हुए सो जाता है थकान से या सुकून से। June/08/2015 Copyright @ D. B. 'Anpadh'

Saawan

Saawan In the month of Saawan Misty all around, how to survive beloved mother of mine, The dark night With drizzling outside and brimful memories of thine. Beyond mountains heavy roar of clouds Ruthlessly it starts raining Baaduli I do have In the month of Saawan  The rills and mountains make boisterous sound You at alien land and lonely I at home My heart dreads In the month of Saawan Children at home, work remains undone in fields Pathetically it rains and I need to collect grass too Uptight my clothes are In the month of Saawan Alone I am with delicate heart of mine This entire monsoon tears enough From my eyes would flow In the month of Saawan Gone the days of heavy rains Gone the monsoon but my eyes remains wet How they’ll get dry In the month of Saawan             Trans on : Aug/20/2018              Copy @ Deepak Bijalwan (I tried to made a sense to sense translation after a healthy discussion with songster Mr.  Negi)