छिड़क दो स्याही
अपने ख़यालात की
एक सादे कागज पर;
नम है जब तलक
तो कैनवास पर कागज के
एक चित्र उकेरो शब्दों का।
कोशिश करो कि उभर के आये
सिर्फ अनुभूति का चेहरा;
किसी दबाव की शक्ल
कुछ बड़ा करने की महक
या कुछ भी बेवजह सा
नही दिखे तो ठीक है।
फिर जो तस्वीर कागज पर
उकेरी है आपने
उसपे ओढ़ना जरूरी है
एक वस्त्र रंगों का
अनगिनत रंगों का,
और जो बनाई हैं आंखें
तस्वीर की
लगाना तो है उनपर
काजल भी।
24 नवंबर 2018
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'अनपढ़'
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Dr. Deepak Bijalwan
Poet, Translator