आहटों का टपकता सिलसिला ज़हन को तरबतर कर देता है,
कि ख़याल तेरे आने का हर पल मुझे बेखबर कर देता है।
पुराने हंसी मौसमों का असर आज कुछ ऐसा कि,
मेरे दो क़दमों के चलने को एक मुकम्मल सफ़र कर देता है।
अच्छा था कि वक़्त यूं उलझा हुआ भी रहा कभी कि,
आज उधेड़बुन से हालातों को ये बेअसर सा कर देता है।
यहीं भीड़ से गुजरते हुए तन्हाई को आवाज दी मैंने,
कि ये आकर पास मेरे हंसी लम्हों को कहर कर देता है।
तलाश-ए-अनपढ़ सुकूनत भरे लम्हों का घर बनाना है,
कि उसके खयालों में डूब जाना हर रात को शहर कर देता है।
25,26 जनवरी 2018
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'अनपढ़'
nice bro
ReplyDeleteThanks a lot
DeleteThanks a lot
DeleteGjb ho gya bhaisaab
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