मैं लेकर आया चंद बून्दें
उस दरिया से
जहाँ पहुंचा मैं
कुछ पेचीदा रास्तों से होकर
और लिख दिया तेरा नाम
एक सादे कागज पर,
और हां
मुकम्मल हो गयी
एक कहानी,
ये महसूस भी नही होता
कि किरदारों को बयां करूं,
बस तेरे खयाल भर से
हर एक हर्फ़
कहने लगता है एक दास्तां।
लौटाकर तुमने साँसों को
बेहद घने अंधेरों से,
एक अनन्त पुल बाँधा
कि जिसमे हर रोज
सफर करते हैं हम;
पहुंचकर इसके छोर तक
कभी तो मुझे देखना है
कि कैसे
तुमने बाँधा है इस पुल को।
खुद को
जो भी मैं लिखा करता हूँ
कि लोग जिससे जानते हैं मेरा लिखना
वो दरअसल
कुछ भी नही खुद का,
गर मैं पढ़ नही पाता हूँ
जितनी भी परतें
खुद में समाए हुए है
एक फैला हुआ सागर
एहसासों का
तो ठीक ही तो हूं मैं
जो कि लिखता हूँ खुद को
बस इन्ही परतों के
शून्य से होकर
मैं जान पाऊंगा
जो है
एक बड़ी सच्चाई।
ढूंढना एक शब्द को
बेहद इत्मीनान से
जो कि
रखता हो एक सामर्थ्य
तुम्हे कह जाने की
ये कतई
मेरे सामर्थ्य में नही;
या शायद कहीं है भी नही
किसी भाषा मे,
मै सिर्फ
माँ कहता हूँ
और सामने होती हो तुम।
(माँ को समर्पित)
12 नवम्बर 2018
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'अनपढ़'
बेहद खूबसूरत
ReplyDeleteBahut shukriya ashm
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