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Showing posts from April, 2020

असीम

मन के विस्तृत घुड़साल में घोड़ों का हिनहिनाना ठीक उसी तरह बेहद प्राकृतिक है जैसे कि दो किनारों के बीच नदी का साँस लेना, अगर हम अवचेतन के गहरे तलों में सबसे निचली सीढ़ी पर व्या...

गज़ल

खड़े हो बिजूके से.. क्यों कोई रंग नहीं दिखता? उदास शामों के साये में वो बेरंग नहीं दिखता। हां कि उतरकर पैमानों से परे अबकी हो जाएं कि फिज़ा-ए-आज में जमाने की बीता रंग नहीं दिखता। ...

लहू का गाढ़ापन

मैं उसके लब्जों के वेग को सह रहा था अपनी छाती पर, उसने कहा कि मेरी रगों में बहता हुआ लहू, बहुत गाढ़ा हो रहा है और इतना कि जान पड़ता है नशें फटने वाली हैं, इससे पहले कि ये फटें, इनमे ब...

राजनीति

यथार्थ है, ठीक उसी तरह जैसे कि आसमान जो कि मेरी जेबों के हर एक पहलू के साथ साथ मेरे जूते के अंदर भी है; कि चाँद का होना समुद्र के अस्तिव को प्रभावित करता है, तो सम्भव है कि इंसान...

वजह

(पर्दों के सरकते ही रंगमंच पर मानवीय सभ्यता अपनी नजरें दौड़ाने लगती है) और हम ये सब महसूस कर पा रहे हैं देख पा रहे हैं; हमारे चारों ओर जितनी भी हवाएँ, जितने भी बवंडर पैदा होते है...