यथार्थ है,
ठीक उसी तरह जैसे कि आसमान
जो कि मेरी जेबों के
हर एक पहलू के साथ साथ
मेरे जूते के अंदर भी है;
कि चाँद का होना
समुद्र के अस्तिव को प्रभावित करता है,
तो सम्भव है कि इंसानों की मौजूदगी भी
इसी प्रभाव के पटल पर
परिवर्तन के कम्पनों को
महसूस करती होगी, लेशमात्र ही क्यों नहीं
ठीक उसी तरह अगर
राजनीति का मौजूद होना जरूरी है
यहाँ तक कि संभवतः
इंसानों के निवाले भी उसी जद में हैं
तो आज मौजूदा राजनैतिक विचारधाराओं को
बदलाव की जरूरत है
चाहे वो वाम हो या दक्षिण
हालांकि यह भी तय है कि
राजनीति जब मानवीय चेतनाओं के
केंद्र को स्पन्दित करने लगती है
तो युद्ध संभव हैं,
स्तर चाहे वैचारिक हो, भौतिक हो या जैविक
इसी मुहाने पर मानवीय सभ्यता खड़ी है
मैं स्पष्ट देख पा रहा हूं
क्योंकि हजारों वर्षों से
यही मानवीय इतिहास का यथार्थ रहा है।
-'अनपढ़'
12 अप्रैल 2020
बहुत बढ़िया गुरु जी
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