तुम्हारे न होने में
तुम्हारे होने की प्रतीति गहन होती है,
और तुम्हारे होने पर
मेरा न होना
मेरे होने के आच्छादन में छिप जाता है,
हमारे न होने से घिरा है हमारा होना,
और हमारा होना प्रतिबिंबित है
हमारे न होने में
हमारा होना पूरा है
ठीक वैसे ही जैसे हमारा न होना
हमारे होने की पूर्णता से ही
हमारे न होने की पूर्णता
पदार्थ की चेतनता पर बिंबित है
प्रेम उसी एक्य की तरफ यात्रा है
जहां द्वैत के सारे अध्यास
अद्वैत के सागर में डूब जाते हैं
अनपढ़
2 जून 2024
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Dr. Deepak Bijalwan
Poet, Translator