तुम्हारी उम्रों के पैर थके हुए नजर आते हैं कि
वो चल रही हैं सफर अपना,
और बहुत लाज़मी भी है
बातों का उसी तरह घटित होना
जैसा कि उनको होना है
तुम्हारे वहाँ होने से जहाँ कि तुम हो
भले ही तुम्हारा वहाँ होना सार्थक नहीं जान पड़ता
क्यों चल रहे हो इतने मुखौटों को लेकर
कि खुद की भी कोई खबर नहीं है,
सड़कों पर रेंगकर मर जाने वाली जिन्दगियाँ
उन तक कोई कराह नहीं पहुंचा पाती
जहाँ पहुँचना लोकतंत्र में तय होना चाहिए
19 मई 2020
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