मैं उसके होंठों को
छुअन के आकाश में उड़ने के लिए छोड़ देता हूँ
तो पैरों के नीचे जमीन महसूसने लगता हूँ
उसके होंठ धरती के चेहरे पर हैं
या मानें कि धरती के चेहरे पर उसके होंठ हैं
और धरती के होंठ उसके होंठ है
इसलिए जब मिलता है आकाश में उड़ती हुई छुअन को
उसके होंठों का आकाश
तो मेरे पैरों के नीचे जमीन महसूसने लगता हूँ।
और उसके होंठों को छूकर
मैं माँ के गर्भ में पहुँच जाता हूँ
जहाँ सोचता हूँ
कि मैं खुद को सोचते हुए देख रहा हूँ
और पृथ्वी के होंठों पर
मैं पैदा हो जाता हूँ
और पैदा होते ही
मेरे पैरों के नीचे जमीन महसूसने लगता हूँ
और फिर उसके होंठो के छुअन के आकाश को
मैं खुद में उतार लेता हूँ
मां के गर्भ में मुस्कुराता हुआ।
----दीपक बिजल्वाण 'अनपढ़'
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Dr. Deepak Bijalwan
Poet, Translator