मैं अपने हृदय को
अम्बर के उस ताक पर
शाम बीतते ही रख दूँगा
जहाँ असंख्य हृदयों की
अपार ऊर्जाएं मौजूद है
जो मानवीय इतिहास की
पहली सीढ़ी से
अब तक सफर में हैं;
फिर उनका प्रतिबिम्ब
देखने को उत्सुक रहूँगा
आँखों के
किवाड़ बन्द करके
अपनी चेतना में किसी खूँटी पर
टंगे हुए दर्पण से
ख़याल आता है कि
तुमसे मुलाक़ात हो पाएगी वहाँ!
27 अप्रैल 2020
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Dr. Deepak Bijalwan
Poet, Translator