जिस तरह से स्मृतियां
लोगों की, जगहों की, किस्सों की
किसी भी रास्ते की
उमड़कर बहती हैं मुझमें
छलछलाते हुए
मेरे हर हिस्से में
और करती हैं मुझे अधीर
घड़ी भर के लिए
और कुछ पहरों के लिए कई दफे;
क्या वही जगहें, वही लोग,
वही किस्से, वही रास्ते
पाते होंगे मुझे भी
दरवाजों पर अपनी चेतना के
कभी भी अपनी याद की
जागती सी खिड़कियों पर।
Jan 15-17 ,19
Copyright @
'अनपढ़'
Comments
Post a Comment
Dr. Deepak Bijalwan
Poet, Translator