हर इंसान
हर रोज
किसी न किसी सफर में है।
जद्दोजहद है
कसक है
उलझन है, सुलझन भी है
ठहराव है, हरकत भी है
सलीखा है, बेखुदी भी है
उम्मीद भी है पहुंचने की
कहीं न कहीं
पहुंचे या नही
क्या पता पर
हर इंसान
हर रोज
किसी न किसी सफर में हैं।
12 दिसंबर 2018
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'अनपढ़'
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Dr. Deepak Bijalwan
Poet, Translator