उलझ के, तड़प के, लड़खड़ा के पर उठो तो सही
अब 'अनपढ़' एक ग़ज़ल सुनाता है तुम सुनो तो सही।
माना कि हर लम्हा मैं गुम रहता हूँ सिर्फ खुद में
अरे तुम तो होश में हो, मुझसे कुछ कहो तो सही।
ये मोह्हब्बत क्या बला है, मुझे जानने की ख़्वाहिश है
तुम अपने लब्जों पे पंख लगा के मेरी तरफ उड़ो तो सही।
उतरती है मेरे जेहन में हवा, चारों तरफ से बहकर
अपनी निगाहों से उठाकर तूफान, मेरी तरफ बहो तो सही।
नींदों में बहुत बड़बड़ा लिया, ख्वाबों की जमीं पर
तुम हकीकत में हर सुबह, मेरे साथ जगो तो सही।
मैं वाकिफ़ हूँ टिहरी के हर एक दिलफ़रेब जंगल से
ये बहुत उम्दा सफर है, तुम मेरे साथ चलो तो सही।
06 दिसंबर 2018
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'अनपढ़'
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Dr. Deepak Bijalwan
Poet, Translator