जितनी भी ताकत है तुम्हारे अंदर
उसे लेकर आओ
और उसका खंजर बनाकर
झोंक दो अपनी तमाम ताकत
मेरे अस्तित्व को
छलनी करने में,
मैं अपनी प्रतिक्रिया पर
खामोशी को ओढ़े हुए रहूंगा
और सहता रहूंगा
तुम्हारे हर वार को।
मैं लापरवाह
इतना तो नही
लेकिन बेखौफ जरूर हूँ
क्योंकि मुझे मालूम है
कि तुम्हारी ताकत
मेरी हिम्मत को नही हरा सकती।
जितनी बेरहमी से
बाज झपटता है
एक अधजली लाश पर
और उसे नोचने लगता है
ठीक उसी तरह
तुम भी आओ
और कोशिश करो
मुझे नोचने की अंदर से,
हालांकि मैं वाकिफ हूँ
कि इतनी ताकत नही है
तुम्हारे अंदर।
तुमने इतनी शिद्दत से
मुझे मारना चाहा
कि अब मुझे
मोह्हब्बत सी हो गयी है तुमसे,
और तुम्हारे होने से
मुझे एहसास होता है
कि मैं जिंदा हूँ।
24 नवम्बर 2018
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'अनपढ़'
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Dr. Deepak Bijalwan
Poet, Translator