एक ख्वाब
उतरकर तुम्हारी आँखों से
गुम है
मेरे उन अश्कों में
जो सिर्फ अंदर ही रह गए।
उम्मीद की छड़ी टेके हुए
उन आंखों में
ख्वाबों की खिड़की से
तमाम रौशनी
घर की हर एक चीज को
रोशन कर रही थी
लेकिन
बेहद खामोश पैरों से
उजाले को लेकर
अपने आगोश में
शायद अनजान अंधेरा
खौफ फैला देता है
जो कि कदमों को
सरकने नहीं देता।
तुम्हारी खामोश
सिसकियों का जवाब
मेरी कविता के
हर लब्ज़ में
नजर आएगा
शोर करते हुए।
जो बही तुम्हारे जहन से
एक नदी बनकर
वो एक मोह्हब्बत थी,
मैं उस नदी के
एक बूंद के बराबर भी नही हूँ
हालांकि अनगिनत बूंदों से ही
बहा करती है एक नदी।
अकेलेपन की
शोरगुल हवाओं के साथ
मैं उठ के आ जाता हूँ
बहुत दूर
खुद के हर हिस्से को लेकर
लेकिन
तुम्हे उसी जगह पाया गया
जहां ख्वाब
वीरान पड़ा हुआ
सिर्फ सिसकियों के सहारे
जी रहा है;
मैं ख्वाहिश में हूँ
उस जगह आने की
और मैं चंद लब्जों की
खुशबू वहां बिखेर दूंगा
ताकि ख्वाब
अपने बेजान हिस्से को
दफनाकर मिट्टी में
पहुंच जाए उस जगह
जहां से
वो निकल आया था
कई चेहरों की चमक
खुद में लेकर।
02 नवम्बर 2018
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'अनपढ़'
बेहतरीन sir
ReplyDeleteशुक्रिया अश्म
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