मैं अगर
लौट पाया वहाँ से
तो एक मुट्ठीभर
मिट्टी लेके आऊंगा,
और तोड़कर लाऊंगा
वो अलसाये हुए पत्ते
पेड़ से
जो कि गिरने वाले हैं
शाखों से।
देखूँगा दम तोड़ते हुए
उन पत्तों को
और,
याद करूंगा वो खाली जगह
पेड़ पर उनकी
जहाँ कुछ वक्त बाद
निकल आएंगे
नए पत्ते।
मैं किसी अजनबी रास्ते की
बात तो नहीं कर सकता
लेकिन,
जो रास्ते
बेजान पड़े हैं सामने
खुद में लटकाये हुए
हजारों पदचिन्हों का बोझ
उन पर जरूर
कुछ बातें की जा सकती हैं।
जो कुछ भी आजकल
हमारे आसपास
पसारे हुए है
पैरों को अपने
उससे पूरी सभ्यता
बजाय कहीं पहुंचने के
सिर्फ घुट के रह जायेगी
एक जगह।
शाखों पर
अलसाये हुए पत्ते
एक हल्के झोंके के साथ हवा के
गिर जाते हैं जमीं पर।
धरती पर
दौड़ते हुए इंसान
कीड़ों से नजर आते हैं
रेंगते हुए एक रफ्तार में
जो कि कभी
थमती हुई नजर नही आती।
मेरे अलावा
सिर्फ
मैं ही ये जानता हूँ
कि
बेवजह हंस लेता हूँ मैं
खुद में कई दफा।
28 अक्टूबर 2018
Copyright @
'अनपढ़'
बेहद खूबसूरत
ReplyDelete