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Showing posts from February, 2018

बाकी तो है...

है अलख धीमा अभी अँधेरा कुछ बाकी तो है, पलकें भी हैं सुस्तायी हुयी सबेरा कुछ बाकी तो है। खँडहर में इस दौर में अब जाले हैं फैले मकड़ियों के, बिखरा पड़ा है टूट के सब बस राख कुछ बाकी त...

Deepak Bijalwan Anpadh

Teachers Day three years back

सफ़र

सामने निगाहों के साया एक नजर आता है, हर एक शय बिखरती है बस वक़्त ठहर जाता है। ख़्वाहिश है पहुँचने की तेरे आशियाँ पे ऐ सुकूँ, पर रस्ते में कहीं एक वीरान शहर आता है। कोशिश में हूँ ज...

गुफ़्तगू

ख़ामोशी से किया शुरू सिलसिला ये गुफ़्तगू का, मैं तसल्ली से समेटने वाला हूँ आलम ये गुफ़्तगू का। इन हवाओं का असर ज़ेहन के तारों को छेड़ जाता है, दुआ है की चलता रहे यूं ही काफिला ये गु...

लम्हों से

रूबरू हुआ तरसते हुए कुछ बीते हुए आजाद लम्हों से, चाहत थी समेटकर रख दूं जिंदगी इन बेताब लम्हों से। नासाज सी दिखी निगाहों में सारी दुनिया आज क्यों, अब क्या ख़ाक सो पाउँगा होके र...

"गुजरता जा रहा है"

काफिला लम्हों का बस गुजरता जा रहा है, कि ये वक़्त हर पल बस बदलता जा रहा है। उदास बिखरा पड़ा है ये शहर मेरे सामने, कि होने को है बहुत कुछ और ये सिमटता जा रहा है। तलाश में गुम हैं निगा...