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Showing posts from January, 2018

उधेड़बुन में...

उधेड़बुन में अपनी तमाम गलियों से भटक आया हूँ, कि शाम फिर ढ़ल गयी मैं अपने घर लौट आया हूँ। घर में रखी हर एक शय मुझसे गुफ्तगू किया करती है, जरा से बाहर आँगन के अपनी ख़ामोशी छोड़ आया हूँ। पहेलियाँ खिसकती हुयी आ पहुंची हैं किनारे तक, और मैं वहीं खुद को उलझा हुआ छोड़ आया हूँ। बड़े इत्मीनान से तय करता है ये वक़्त सफ़र अपना, नींद से उठकर देखा तो मैं कुछ ख्वाब छोड़ आया हूँ। दौड़ता हुआ चला जो पीछे मैं एक जुगनू के फिर देखा, कि कुछ लोगों को मैं नंगे बदन छोड़ आया हूँ  । 27जनवरी 2018 Copyright @ 'अनपढ़'

Deepak Bijalwan Anpadh

You yourself are the most important person in your life.

Deepak Bijalwan Anpadh

His very thought takes you to blissful excursion.

Deepak Bijalwan Anpadh

We need to learn the art of creating new perspectives.

रात को शहर कर देता है...

आहटों का टपकता सिलसिला ज़हन को तरबतर कर             देता है, कि ख़याल तेरे आने का हर पल मुझे बेखबर कर देता है। पुराने हंसी मौसमों का असर आज कुछ ऐसा कि, मेरे दो क़दमों के चलने को एक मुकम्मल सफ़र कर देता है। अच्छा था कि वक़्त यूं उलझा हुआ भी रहा कभी कि, आज उधेड़बुन से हालातों को ये बेअसर सा कर देता है। यहीं भीड़ से गुजरते हुए तन्हाई को आवाज दी मैंने, कि ये आकर पास मेरे हंसी लम्हों को कहर कर देता है। तलाश-ए-अनपढ़ सुकूनत भरे लम्हों का घर बनाना है, कि उसके खयालों में डूब जाना हर रात को शहर कर देता है। 25,26 जनवरी 2018 Copyright@ 'अनपढ़'

Deepak Bijalwan Anpadh

A passionate dream to publish my book during my college days.

Deepak Bijalwan Anpadh

Positive thinking makes you strong psychological ly

Deepak Bijalwan Anpadh

Smile and the world smiles back at you

Deepak Bijalwan Anpadh

It goes like this. Life is what it is about

Deepak Bijalwan Anpadh

Moments

Deepak Bijalwan Anpadh

Moments

Deepak Bijalwan Anpadh

Moments

Deepak Bijalwan Anpadh

The most important thing is how you do what you do. 

Deepak Bijalwan Anpadh

Moments

Deepak Bijalwan Anpadh

Creativity keeps us alive... 

Deepak Bijalwan Anpadh

We need to set a reason to wake up every morning. 

"अपने ही घर से..."

कि आवाज जो सहमी हुयी थी एक अज़ीब डर से, वो शख्स भागा फिर रहा है अपने ही घर से। वजूद इसका है या उसका जो दिखता नहीं पर है तो, एक साये से लड़ता फिर रहूँ हूँ अपने ही अंदर से। इस कागज़ में सिमटी रह जाती है मेरी शख्सियत सारी, हूँ खाली तो कभी मोती हैं कुछ खयालों के समंदर से। हर एक हर्फ़ भीगा अपने ही अश्कों से, पुरानी तस्वीर जो एक मिली अतीत के खँडहर से। थकान का चेहरा है इस तरह की झपकी पलकों में, हैं बेशुमार ख्वाब तो फिर क्या रहें बेखबर से। Copyright @ 'अनपढ़' 3 जनवरी 2018