क्या करूँ बड़ी उलझन में हूँ ये सुकूँ कहाँ से लाऊँ
गर इस मौसम में आज मुलाकात न हो तो मैं ज़ेहन से बिखर जाऊं|
नाम क्या दूँ जो दरमियाँ है तेरे मेरे ये रिश्ता
कोशिश में हूं कि अल्फाज़ कोई नया कहीं से लाऊं|
चाँद से जी भर के बात की वो जो तेरी हथेली में है
मन चाँदनी में नहाने का है हर रोज तेरी हथेली कहाँ से लाऊँ|
चले आओ कि मैं बैठा हूँ उसी जगह पे इंतजार में
अब अनपढ़ हम तुम वही हैं पर वो मौसम कहाँ से लाऊँ
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Dr. Deepak Bijalwan
Poet, Translator