कहाँ तक डुबोने का मन है मुझे ऐ दरिया-ए-दर्द,
आ का तुझमे घुल जाऊं ...तसल्ली से दरिया-ए दर्द।
वो के छूकर बहुत गहरा निकल गया मुस्कुराकर,
पता बहुत देर से हुआ कि ...वो तो था ही बस बेदर्द।
अब के नहा भी लूँ इत्मीनान से इन्ही अश्कों में,
फिर गुजरने को तैयार होना है... कि हैं बेशुमार दर्द।
तनहा फिरता हूँ और फिर मोह्हबत भी तन्हाई से,
पर तन्हाई में बस वो हो ...न हो तन्हाई-ए दर्द।
उसको बातों पे बुलाया है फिर आज कि आओ तो,
कि दरिया तो है बस भ्रम सा... न है कोई दरिया-ए-दर्द।
Fantastic... Sir
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