कोशिश में हूँ बड़ी सिद्दत से
कि ये दिया जलता रहे,
और एक तुम जो हर हवा का रुख
उसी तरफ मोड़ रही हो।
कुछ नही है बात करने को
ये वो कह रहा है,
जिसे हर बात ज्यादा बोलने पर
मैं चुप कराया करता था।
मेरी दुवाएं साथ हैं कि
मेरी तरह उसका दिल न दुखे,
कुछ यूं वो टूटेगा कि
नाम-ओ-निशां मिट जायेगा।
ये मैं ही हूँ कि शाहिल पे
आ गया लड़खड़ाते हुए,
जबकि हर एक लहर बेताब थी
मुझे निघलने के लिए।
'अनपढ़'
25 अगस्त 2017
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Dr. Deepak Bijalwan
Poet, Translator