मछली थी दरिया के बाहर तड़पती रही जिन्दगी के लिए
हमने साँसे तक बेच डाली ताउम्र जिन्दगी के लिए।
मिट्टी से मोह्हबत होती रही बेइन्तहां कुछ इस कदर
कि मिट्टी में मिल भी जाएंगे इसी मिट्टी के लिए।
घर का हर एक शख्स एक उलझन की जद में है
उलझन की हद यूँ कि सुलझ गए हैं इसी उलझन के लिए।
चीखते रहे ,भटकते रहे ,जंगल -जंगल रोये बहुत
आँगन में पहुँचते ही मुस्कुरा दिए अपनी जिंदादिली के लिए।
सुकूँ मिला जो उधेड़बुन में बैठे कोने में किसी मंदिर के
कहाँ-कहाँ नही भटकता इंसान बस सुकूँ के लिए।
Amazing sir
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