तेरी हिचकियों में अपना नाम तुझ तक पहुंचा दूंगा,
मैं यकीनन अपना सलाम तुझ तक पहुंचा दूंगा |
ज़ेहन की दीवारें टूटकर बिखरने की कगार पर हैं,
मेरी साँसों से अपना पैगाम तुझ तक पहुंचा दूंगा|
गर परिन्दा कोई यहाँ से उड़ के तेरे शहर में आये,
तो अपनी वीरान रातों के सूनेपन का कोहराम तुझ तक पहुंचा दूंगा |
अनपढ़ काबिल तो है यादों को काग़ज पे फ़ैलाने के,
हंसी फ़िज़ाओं पे एक ख़त लिखके गुमनाम तुझ तक पहुंचा दूंगा |
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Dr. Deepak Bijalwan
Poet, Translator