फ़ुरसत एक ऐसी की बस तुझे सोचता रहूँ
दुवाओं के वीरां सफ़र में बस तुझे मांगता रहूँ
चंद लम्हे मैं जी लूँ तुझमे कुछ यूं पूरा समाकर
क़ि फिर जियूं तो हर जगह बस तुझे देखता रहूँ
रात करवटों में चेहरा तुझे सोच के हँसता रहा
सुबह सूरह की रौशनी में बस तुझसे ही तपता रहूँ
सलीखे से पढ़ लिया मैंने तेरी आँखों के परदे को
अब सारी किताबें छोड़कर बस तुझे ही पढता रहूँ
Bahut sunder anpadh sahab.
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