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Showing posts from May, 2020

गज़ल (....क्या हो चला हूँ मैं)

महज़ आइनों को ख़बर हुई कि क्या हो चला हूँ मैं ...पर किन्हीं खयालों को चेहरा मिलने से बस 'मैं ' हो चला हूँ मैं मैं और तू के फासलों से परे उतरना ......बस समंदर में वरना बूँद-बूँद ...और ..दरिया-दर...

कराह

तुम्हारी उम्रों के पैर थके हुए नजर आते हैं कि वो चल रही हैं सफर अपना, और बहुत लाज़मी भी है बातों का उसी तरह घटित होना जैसा कि उनको होना है तुम्हारे वहाँ होने से जहाँ कि तुम हो भल...

मुलाक़ात

मैं अपने हृदय को अम्बर के उस ताक पर शाम बीतते ही रख दूँगा जहाँ असंख्य हृदयों की अपार ऊर्जाएं मौजूद है जो मानवीय इतिहास की पहली सीढ़ी से अब तक सफर में हैं; फिर उनका प्रतिबिम्ब ...