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Showing posts from November, 2017

फ़ुरसत

फ़ुरसत एक ऐसी की बस तुझे सोचता रहूँ दुवाओं के वीरां सफ़र में बस तुझे मांगता रहूँ चंद लम्हे मैं जी लूँ तुझमे कुछ यूं पूरा समाकर क़ि फिर जियूं तो हर जगह बस तुझे देखता रहूँ रात करवटों में चेहरा तुझे सोच के हँसता रहा सुबह सूरह की रौशनी में बस तुझसे ही तपता रहूँ सलीखे से पढ़ लिया मैंने तेरी आँखों के परदे को अब सारी किताबें छोड़कर बस तुझे ही पढता रहूँ

एक तू ही तो है

एक तू ही तो है जो मुझको इतने मंजर दिखाता है मुख़्तलिफ़ राहों पे भी मंज़िलों से रूबरू कराता है भारी बहुत थी अर्थी कंधे मेरे दुःख गए ऐ मालिक रोज तू मुझे दुनिया का एक चेहरा दिखाता है

जख्मी परिन्दा

जख्मी एक परिन्दा जाल में जब फड़फड़ाया, तो बेसबब निगाहों में मेरा बचपन दौड़ आया। साये में जिस पेड़ के थे वो टूट गया जड़ से, हर तरफ रौशनी जो बुझी तो अँधेरा फिर काटने आया। तपती रेत ने हाथोँ पे छाले कर दिए, चढते रस्तों ने मुसलसल जिन्दगी जीना सिखाया। सर्द मौसम के कहरों से पूरा बदन जब कांपने लगा, तब माँ के चोटिल हाथोँ ने हर शाम सर को सहलाया। खो गया यूं ही बचपन ये बहारों सा, अब चंद हंसते चेहरे देख के आँखों में अश्कों का दरिया आया। उसी की नेमतें हैं की जिन्दां हैं अब तक सफ़र में, बदौलत उसी की यहाँ तक ख्वाबों का काफिला आया । Feb. 22 .2017 ' Anpadh'