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Showing posts from June, 2020

तुम्हारे लिए कोई कविता

तुम तपती रही सारी उम्र धधकती दोपहरों में ठिठुरती रही तुम पूस की तरह हमारे लिए पतझड़ों में तुम झड़ती रही जैसे शाखों से बेजान पत्ते, घास के गट्ठरों के नीचे तुम्हारी जिंदगी घिस...